आश्रय रहित, आशा रहित, संतोषी चरित्र में तत्पर, ऐसे मुनि अपने शरीर में ममत्व नहीं करते, यही व्रत शुद्धि है।
ब्रह्मचर्य आश्रम को धारण करने वाला व ब्रह्मचारी बालक अत्यन्त पवित्र व स्वच्छ जीवन बिताता है। कमर में रत्नत्रय के चिन्ह तीन लर की मूंज की रस्सी, टाँगों में पवित्र अर्हन्त की सूचक उज्ज्वल व सादी धोती, वक्षस्थल पर सात …
जिसको जीवों का स्वरूप मालूम हुआ है, ऐसे मुनि को नियम से व्रत देना यह व्रतारोपण नाम का छठा स्थितिकल्प है। पूर्ण निर्ग्रन्थ अवस्था धारण की है, उद्देशिक आहार और राजपिंड का त्याग किया है, जो गुरुभक्त और विनयी है, …
विद्याध्ययन पूरा करने पर 12वें या 16वें वर्ष में गुरु साक्षी में देव पूजा आदि विधि पूर्वक गृहस्थ आश्रम में प्रवेश पाने के लिए उपयुक्त सर्वव्रतों को त्याग कर श्रावक के योग्य आठ मूलगुणों को धारण करता है और कथाचित्र …