व्रतचर्या क्रिया
ब्रह्मचर्य आश्रम को धारण करने वाला व ब्रह्मचारी बालक अत्यन्त पवित्र व स्वच्छ जीवन बिताता है। कमर में रत्नत्रय के चिन्ह तीन लर की मूंज की रस्सी, टाँगों में पवित्र अर्हन्त की सूचक उज्ज्वल व सादी धोती, वक्षस्थल पर सात लर का यज्ञोपवीत, मन, वचन व काय की शुद्धि का प्रतीक सिर का मुंडन इतने चिन्ह धारण करके अहिंसाणुव्रत का पालन हुआ गुरु के पास विद्याध्ययन करता है। वह कभी हरी दातौन नहीं करता । पान खाना, अंजन लगाना, उबटन से स्नान करना व पलंग पर सोना आदि बातों का त्याग करता है। स्वच्छ जल से स्नान करता है तथा अकेला पृथ्वी पर सोता है। अध्ययन क्रम में गुरु के मुख से पहले श्रावकाचार और फिर अध्यात्म शास्त्र का ज्ञान कर लेने के अनन्तर व्याकरण, न्याय, छन्द, अलंकार, गणित, ज्योतिष आदि विद्याओं को भी यथाशक्ति पढ़ता है।