व्युदास के द्वारा एक वस्तु के अभाव में दूसरी वस्तु का सद्भाव ग्रहण किया जाता है। प्रत्यक्ष से अन्य सो अप्रत्यक्ष, ऐसा व्युदास हुआ।
अन्तिम उत्तम शुक्ल ध्यान व्यतिरेक रहित है, अनिवृत्ति है, क्रिया रहित है, शैलेषी अवस्था को प्राप्त है और योग रहित है, औदारिक शरीर, तैजस और कार्मण शरीर, इन तीनों शरीरों का बंध नाश करने के लिए अयोगी केवली भगवान व्युपरत …
जन्म के एक वर्ष पश्चात जिनेन्द्र पूजन विधि, दान बंधुवर्ग का निमंत्रण आदि कार्य करना चाहिए, इसे वर्ष वर्धन या वर्षगांठ कहते हैं ।
जो शल्य रहित होता हुआ निर्दोष रूप से पाँच अणुव्रतों को तथा सात शीलव्रतों अर्थात तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों को भी धारण करता है वह व्रत प्रतिमा का धारी माना जाता है ।