व्युपरतक्रिया निवृत्ति
अन्तिम उत्तम शुक्ल ध्यान व्यतिरेक रहित है, अनिवृत्ति है, क्रिया रहित है, शैलेषी अवस्था को प्राप्त है और योग रहित है, औदारिक शरीर, तैजस और कार्मण शरीर, इन तीनों शरीरों का बंध नाश करने के लिए अयोगी केवली भगवान व्युपरत क्रिया निवृत्ति नामक चतुर्थ शुक्ल ध्यान को ध्याते हैं। तृतीय शुक्ल ध्यान के उपरान्त चौथे प्राणातिपात के प्रचार रूप क्रिया का और सब प्रकार के काययोग, वचनयोग, मनयोग के द्वारा होने वाली आत्मप्रदेश परिस्पंदन रूप क्रिया का उच्छेद हो जाने से इसे व्युपरत क्रिया निवृत्ति ध्यान कहते हैं।