हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह से निवृत होना व्रत है अथवा प्रतिज्ञा करके जो नियम लिया जाता है वह व्रत है। जैसे- यह करने योग्य है तथा यह नहीं करने योग्य है इस प्रकार नियम करना व्रत अथवा प्राणियों …
जो शल्य रहित होता हुआ निर्दोष रूप से पाँच अणुव्रतों को तथा सात शीलव्रतों अर्थात तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों को भी धारण करता है वह व्रत प्रतिमा का धारी माना जाता है ।
आश्रय रहित, आशा रहित, संतोषी चरित्र में तत्पर, ऐसे मुनि अपने शरीर में ममत्व नहीं करते, यही व्रत शुद्धि है।
ब्रह्मचर्य आश्रम को धारण करने वाला व ब्रह्मचारी बालक अत्यन्त पवित्र व स्वच्छ जीवन बिताता है। कमर में रत्नत्रय के चिन्ह तीन लर की मूंज की रस्सी, टाँगों में पवित्र अर्हन्त की सूचक उज्ज्वल व सादी धोती, वक्षस्थल पर सात …
जिसको जीवों का स्वरूप मालूम हुआ है, ऐसे मुनि को नियम से व्रत देना यह व्रतारोपण नाम का छठा स्थितिकल्प है। पूर्ण निर्ग्रन्थ अवस्था धारण की है, उद्देशिक आहार और राजपिंड का त्याग किया है, जो गुरुभक्त और विनयी है, …