भोग भूमि के समय वहाँ पर गाँव व नगरादिक सब नहीं होते। केवल वे सब कल्पवृक्ष होते है, जो जुगलों को अपने-अपने मन की कल्पित वस्तुओं को दिया करते हैं। भोगभूमि में पानांग, तूर्यांग, भूषणांग, भोजनांग, आलयांग, दीपांग, भाजनांग, मालांग …
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