वृक्षमूल
वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे ध्यान लगाना वृक्ष योगमूल कहलाता है। इस योग को धारण करने पर भी अपने हाथ से पाँव से और शरीर से जलकायिक जीवों को दुःख देना, अर्थात् शरीर से लगे हुए जल कण हाथ से पोंछना अथवा अपने पाव से शिला या फलक पर संचित जल को अलग करना, गीली मिट्टी की जमीन पर सोना, जहाँ जल प्रवाह बहता है, ऐसे स्थान में अथवा खोल प्रदेशों में बैठना वृष्टि प्रतिबन्ध होने पर कब वृष्टि होगी ऐसी चिन्ता करना और वृष्टि होने पर उसके उपशम की चिन्ता करना अथवा वर्षा का निवारण करने के लिए छत्र, चिटाई आदि धारण करना ।