पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय है अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले पुरुषों के प्रति विनम्र वृत्ति धारण करना विनय है। निश्चय और व्यवहार के भेद से विनय दो प्रकार की है। स्वकीय निश्चय रत्नत्रय की शुद्धि निश्चय विनय …
अर्हन्त आदि परम गुरुओं में यथायोग्य पूजा भक्ति आदि तथा ज्ञान आदि में यथा विधि भक्ति से युक्त गुरुओं में सर्वत्र अनुकूलवृत्ति रखने वाले प्रश्न, स्वाध्याय, वाचना कथा और विज्ञप्ति आदि में कुशल देशकाल एवं भाव के स्वरूप को समझने …
मोक्ष के साधनभूत सम्यग्ज्ञान आदि का और उसके साधक गुरुजनों का यथायोग्य रीति से आदर-सत्कार करना तथा कषाय की निवृत्ति करना विनय – सम्पन्नता है । यह सोलह कारण भावना में एक भावना है।