चित्र खींचना या गणित आदि 72 कलाओं में निपुण विद्याकर्म कर्मार्य है, अर्थात् 64 गुण या ऋद्धियों से सम्पन्न विद्याकर्म आर्य है ।
जिसमें सर्व विद्याओं, आठ महानिमित्तों, क्षेत्र, श्रेणी, लोक-प्रतिष्ठा, समुद्घात आदि का वर्णन किया गया है वह विद्यानुप्रवाद – पूर्व नाम का दसवां पूर्व है।
आहार देने वाले व्यंतर आदि देवों को विद्या तथा मंत्र से बुलाकर साधन करे, वह विद्या मंत्र दोष है अथवा आहार देने वाले गृहस्थों के देवता को बुलाकर साधना, वह भी विद्या मंत्र दोष है।