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वं वक वच वज वण वद वध वन वय वर वश वष वस वा वि वी वृ वे वै व्
वन  वनस वनी वन्
23 July

वन 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

उत्कृष्ट मिश्रण होना द्यवन है। अर्थात् आत्मा की सम्यग्दर्शनादिरूप परिणति होना उद्यवन शब्द का अर्थ है । प्रश्न – सम्यग्दर्शनादि तो आत्मा से अभिन्न हैं तब उनका उसके साथ सम्मिश्रण होना कैसे कहा जा सकता हैं ? उत्तर- यहाँ पर …

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23 July

वनस्पति 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

वनस्पति के चार भेद हैं- वनस्पति कायिक, वनस्पति काय, वनस्पति जीव और सामान्य वनस्पति । वनस्पति ही जिसका शरीर है उस जीव को वनस्पतिकायिक कहते हैं। वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैं- साधारण वनस्पति और प्रत्येक वनस्पति (दे० वह नाम) …

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23 July

वनीपक दोष 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

कुत्ता, कौवा या पाखण्डी साधु आदि को दान देने से पुण्य होता है – ऐसा दाता के अनुकूल वचन बोलकर यदि साधु आहार ग्रहण करे तो यह वनीपक नाम का दोष है।

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23 July

वन्दना 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

एक तीर्थंकर को नमस्कार करना वन्दना है। अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले यति, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक एवं स्थविर के गुणों को जानकर श्रद्धा सहित विनय में प्रवृत्ति करना वन्दना है। तीर्थंकर व केवली की, आचार्य उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर साधु …

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