उत्कृष्ट मिश्रण होना द्यवन है। अर्थात् आत्मा की सम्यग्दर्शनादिरूप परिणति होना उद्यवन शब्द का अर्थ है । प्रश्न – सम्यग्दर्शनादि तो आत्मा से अभिन्न हैं तब उनका उसके साथ सम्मिश्रण होना कैसे कहा जा सकता हैं ? उत्तर- यहाँ पर …
एक तीर्थंकर को नमस्कार करना वन्दना है। अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले यति, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक एवं स्थविर के गुणों को जानकर श्रद्धा सहित विनय में प्रवृत्ति करना वन्दना है। तीर्थंकर व केवली की, आचार्य उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर साधु …
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