वन्दना
एक तीर्थंकर को नमस्कार करना वन्दना है। अथवा रत्नत्रय को धारण करने वाले यति, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक एवं स्थविर के गुणों को जानकर श्रद्धा सहित विनय में प्रवृत्ति करना वन्दना है। तीर्थंकर व केवली की, आचार्य उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर साधु की तथा चैत्य चैत्यालय की वन्दना करनी चाहिए। इसमें प्रदक्षिणा और नमस्कार आदि क्रियाओं को तीन बार किया जाता है तथा एक ही दिन में जिन, गुरू, ऋषियों की वन्दना तीन बार की जाती है तीनों संध्याओं में वन्दना का काल छह-छह घड़ी होता है।