तत्त्वार्थ के विषय में तन्मयपना रुचि कहलाती है दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय ये एकार्थवाची हैं। रुचि या श्रद्धान या निश्चय अथवा जो जिनेन्द्र ने कहा वही है। वात, पित्त और कफ की विषमता से उत्पन्न होने वाली शरीर सम्बन्धी …
सब रुद्र दश पूर्व का अध्ययन करके विषयों के निमित्त तप से भ्रष्ट होकर सम्यक्त्व रूपी रत्न से रहित होते हुए घोर नरक में डूब जाते हैं। रुद्रों के जीवन में असंयम का भार अधिक होता है, इसलिए नरकगामी होना …