रमने को रति कहते हैं। जिसके द्वारा जीव विषयों आसक्त होकर रमता है, उसे रति कहते हैं। अथवा जिस कर्म के उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों में रुचि या राग उत्पन्न होता है, उसे रति कहते हैं । …
इन्द्रियों के शब्दादि विषयों में या देश नगर आदि में रति उत्पन्न करने वाला रति उत्पादक वचन है।
रत्नकरण्ड-श्रावकाचार – समन्तभद्राचार्य द्वारा रचित है । इसमें 8 अधिकार है । अधिकार सम्यग्दर्शन-अधिकार सम्यग्ज्ञान-अधिकार सम्यक-चारित्र-अधिकार अणुव्रत-अधिकार गुणव्रत-अधिकार शिक्षाव्रत-अधिकार सल्लेखना-अधिकार श्रावकपद-अधिकार