साधु भिक्षावृत्ति से आहार करते हैं। यथाकाल वृत्तिसंख्यान सहित भिक्षार्थ चर्या करते हैं । भिक्षा के योग्य काल में जिस समय बच्चे अपना पेट भरकर खेला करते हों, जिस समय श्रावक बलिकर्म कर रहे हों अर्थात् देवताओं को भातादि नैवेद्य …
भिक्षा का काल और भूख का समय जानकर कुछ अवग्रह अर्थात् वृत्ति परिसंख्यान आदि नियम ग्रहण कर ग्राम या नगर में ईर्यासमिति से जाना भिक्षाचर्या है आहार स्वयं पकाना व दूसरे से पकवाना जो न तो करते हैं न कराते …
आचार सूत्र के अनुसार देशकाल की प्रकृति को जानने में कुशल है चन्द्रमा की गति के समान हीन या अधिक घरों की जिसमें मर्यादा है ऐसी विशिष्ट विधानवाली हो ऐसी भिक्षाशुद्धि है दीन या याचक वृत्ति से रहित होकर प्रासुक …