भिक्षा
साधु भिक्षावृत्ति से आहार करते हैं। यथाकाल वृत्तिसंख्यान सहित भिक्षार्थ चर्या करते हैं । भिक्षा के योग्य काल में जिस समय बच्चे अपना पेट भरकर खेला करते हों, जिस समय श्रावक बलिकर्म कर रहे हों अर्थात् देवताओं को भातादि नैवेद्य चढ़ा रहे हों, वह भिक्षाकाल है। मौन सहित व याचना रहित चर्या करते हैं। मुनि की चर्या पाँच प्रकार की बताई हैउदराग्नि प्रशमन, अक्षमृक्षण, गोचरी, गर्तपूरण भ्रामरी ।