जो होने योग्य हो उसे भवितव्य कहते हैं। अंतरंग और बहिरंग दोनों कारणों के अनिवार्य संयोग द्वारा उत्पन्न होने वाला कार्य ही जिसका ज्ञापक है ऐसी इस भवितव्यता की शक्ति अलंध्य है। अहंकार से युक्त संसारी प्राणी मन्त्र-तन्त्रादि अनेक सहकारी …
मुकुटधरों में अन्तिम चन्द्रगुप्त ने जिनदीक्षा धारण की इसके पश्चात् मुकुटधारी दीक्षा को धारण नहीं करते। जो श्रुततीर्थ धर्म प्रवर्तन का कारण है, वह बीस हजार 317 वर्षों में कालदोष से विच्छेद को प्राप्त हो जायेगा। इतने समय में (बीस …