आयु कर्म के उदय का निमित्त पाकर जो जीव की मनुष्य आदि पर्याय होती है उसे भव कहते हैं मनुष्य तिर्यंच, देव व नरक ये चार भव है।
संसारी जीव ने नरक की छोटी सी आयु से लेकर ग्रैवेयक विमान तक आयुक्रम से अनेक बार भ्रमण किया है। नरक गति में जघन्य आयु दस हजार वर्ष है। दस हजार वर्ष की आयु के साथ कोई जीव प्रथम नरक …
आयु कर्म की चारों प्रकृतियाँ भव प्रत्यय प्रकृतियाँ हैं क्योंकि इनका विपाक नरक आदि भवों में होता है।
जिन कर्मों का विपाक या फल मनुष्य आदि भव के रूप में होता है वे भव-विपाकी कर्म कहलाते हैं। नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु ये चारों आयु- कर्म भवविपाकी हैं।