निगोद से निकलना, त्रस पर्याय पाना और संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य होना अत्यन्त दुर्लभ है। कदाचित् इसकी प्राप्ति हो जाए तो उत्तम देश, कुल और निरोगता प्राप्त होना कठिन है । इस सबके मिल जाने पर भी विषय सुख से विरक्त …
इस मत का अपर नाम सुगत है। सुगत को तीर्थंकर, बुद्ध अथवा धर्म धातु कहते हैं। ये लोग सात सुगत मानते हैं। विपर्या, शिखी, विश्वभू क्रकुच्छन्द, कांचन, काश्यप और शाक्यसिंह ये लोग बुद्ध को भगवान सर्वज्ञ मानते हैं। बुद्ध के …
जिनका बह्म अर्थात् चारित्र शान्त है, वह अघोर गुण ब्रह्मचर्य कहलाते हैं, ऐसे मुनि शान्ती और पुष्टी के कारण होते हैं। इसलिए उनके तपश्चरण के माध्यम से ईति-भीति, युद्ध और दुर्भिक्षादि शान्त हो जाते है।
प्रारम्भ की छह प्रतिमाओं का पालन करते हुऐ जो श्रावक कामसेवन का सर्वदा त्याग कर देता है और स्त्रीकथा आदि से भी निवृत हो जाता है वह सातवीं प्रतिमा रूप गुण का धारी ब्रह्मचारी श्रावक है ।