अपने शरीर से भिन्न भवन, मंडप आदि अनेक रूप धारण करने की सामर्थ्य होना पृथक्त्व – विक्रिया कहलाती है। यह देवों में जन्म से पायी जाती है तथा मनुष्यों को तप व विद्या से प्राप्त होती है।
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अपने शरीर से भिन्न भवन, मंडप आदि अनेक रूप धारण करने की सामर्थ्य होना पृथक्त्व – विक्रिया कहलाती है। यह देवों में जन्म से पायी जाती है तथा मनुष्यों को तप व विद्या से प्राप्त होती है।
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