द्रव्य गुण और पर्याय के मिलने को पृथकत्व कहते हैं । निजशुद्धात्मा के अनुभव रूप भावश्रुत को और निजशुद्धात्मा को कहने वाले अन्तर्जल्प रूप वचन को वितर्क कहते हैं इच्छा के बिना ही एक अर्थ से दूसरे अर्थ में एक …
अपने शरीर से भिन्न भवन, मंडप आदि अनेक रूप धारण करने की सामर्थ्य होना पृथक्त्व – विक्रिया कहलाती है। यह देवों में जन्म से पायी जाती है तथा मनुष्यों को तप व विद्या से प्राप्त होती है।