यह मध्यलोक का तीसरा द्वीप है। इसकी पूर्व और पश्चिम दिशा में दो सुमेरू हैं। इसका विस्तार कालोदधि से दुगुना है। इस द्वीप का आधा भाग मनुष्य क्षेत्र की सीमा निश्चित करने वाले मानुषोत्तर पर्वत के द्वारा विभाजित है। अतः …
जिस ऋद्धि का धारक मुनि वन फलों में, फूलों में और पत्तों में रहने वाले जीवों की विराधना न करके उनके ऊपर से जाता है, वह फलचारण, पुष्पचारण, तथा पत्रचारण ऋद्धि है।