निजात्मा का चिन्त्वन करना पिण्डस्थ ध्यान है अथवा श्वेत किरणों से प्रकाशित और आठ प्रातिहार्य से युक्त जो निज रूप अर्थात् अर्हन्त तुल्य आत्म स्वरूप का ध्यान किया जाता है, उसे पिण्डस्थ ध्यान कहते हैं। अथवा अपनी नाभि में, हाथ …
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