दूसरे के प्रति अशुभ परिणाम होना पाप है अथवा अनिष्ट पदार्थों की प्राप्ति जिससे होती है ऐसे कर्म को या भावों को पाप कहते हैं अथवा जो जीव को शुभ या पुण्य से दूर रखता है वह पाप है अर्हन्त …
पुण्य के उदय से प्राप्त बुद्धि, कौशल, निरोग शरीर आदि क्षमताओं को पापार्जन में लगा देना यह पापानुबंधी – पुण्य का उपभोग है।