मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थ्य भाव से वृद्धि को प्राप्त होते हुए समस्त हिंसा का त्याग करना जैनों का पक्ष कहलाता है इसलिए ग्रहस्थ धर्म में जिनेन्द्र भगवान के प्रति श्रद्धा रखता हुआ जो श्रावक हिंसा आदि पाँच पापों को …
सुमेरूपर्वत के चतुर्थ वन का नाम पाण्डुकवन है। पाण्डुक वन में स्थित चार शिलाओं में एक शिला का नाम पाण्डुक-शिला है। यह पाण्डुक वन के पूर्व और उत्तर दिशा के बीच में स्थित सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और …
आहार ग्रहण करते समय यदि साधु की अंजुलि में चींटी आदि जीव मर जाता है तो यह पाणिजन्तुवध नाम का अंतराय है।