प्रति नियत पर्यायों की उत्पत्ति होने से पर्यायवत्त्व भी सभी द्रव्यों में पाया जाता है तथा कर्मोदय आदि की अपेक्षा का अभाव होने से यह भी पारिणामिक है।
द्रव्य को गौण करके जो पर्याय को ग्रहण करता है वह पर्यायार्थिक नय है जैसे स्वर्ण द्रव्य है। वह कुण्डल, हार, मुकुट आदि अनेक पर्यायों में प्राप्त होता है। जब दृष्टि पर्याय की ओर होती है तब कुण्डल लाओ ऐसा …
पर्युदास के द्वारा एक वस्तु के अभाव में दूसरी वस्तु का सद्भाव ग्रहण किया जाता है।