पर्यायार्थिक नय
द्रव्य को गौण करके जो पर्याय को ग्रहण करता है वह पर्यायार्थिक नय है जैसे स्वर्ण द्रव्य है। वह कुण्डल, हार, मुकुट आदि अनेक पर्यायों में प्राप्त होता है। जब दृष्टि पर्याय की ओर होती है तब कुण्डल लाओ ऐसा कहने पर लाने वाला हार या मुकुट आदि नहीं लाता क्योंकि हार या मुकुट स्वर्णमय होते हुए भी कुण्डल पर्याय से भिन्न है इसी तरह जीव की देव, मनुष्य आदि पर्यायों को ग्रहण करना पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा ही संभव है। पर्यायार्थिक नय के मुख्य दो भेद हैं- शुद्ध और अशुद्ध पर्यायार्थिक नय । षट्गुण हानिवृद्धि द्वारा उत्पन्न शुद्ध सूक्ष्म एकसमयवर्ती अर्थ पर्याय को ग्रहण करने वाला शुद्ध पर्यायार्थिक नय है तथा चिरकाल स्थायी, संयोगी व स्थूल व्यंजन पर्याय को ग्रहण करने वाला अशुद्ध पर्यायार्थिक नय है ।