दोनों जंघाओं को आपस में मिलाकर ऊपर नीचे रखने से पर्यंकासन कहते हैं ।
निग्रह स्थान में प्राप्त हुए का निग्रह न करना पर्यनुयोज्योपेक्षण नामक निग्रह स्थान कहलाता है।
जिस कर्म के उदय से जीवों के आहार, शरीर, इन्द्रिय आदि पर्याप्तियों की पूर्णता होती है, उसे पर्याप्त नामकर्म कहते हैं ।