जग में ‘न’ यह शब्द प्रसक्त समस्त अर्थ का तो प्रतिछेद करता ही है, परन्तु किन्तु वह प्रसक्त अर्थ के अवयव अर्थात् एक देश में अथवा उससे भिन्न अर्थ में रहता है। अर्थात् उसका बोध करता है ‘नो’ यह शब्द …
यहाँ “नञ्” का प्रयोग “ईषद्” अर्थ में किया है, ईषत् इन्द्रिय अनिन्द्रिय, जैसे ब्राह्मण कहने से ब्राह्मणत्व रहित किसी अन्य पुरुष का ज्ञान होता है, वैसे अनिन्द्रिय कहने से इन्द्रिय रहित किसी अन्य पदार्थ का बोध नही करना चाहिए। जैसे …
शरीर की स्थिति में निमित्तभूत और पुण्य रूप जो असाधारण अनंत परमाणु प्रतिक्षण अर्हन्त भगवान के शरीर से संबंध को प्राप्त होते हैं उसे नो-कर्माहार कहते हैं । अर्हन्त भगवान के एकमात्र नो-कर्माहार ही होता है ।