सत् और कारण रहित नित्य कहलाता है। सत् के भाव से या स्वभाव से अर्थात् अपनी जाति से च्युत न होना नित्य है । ‘यह वह है’ इस प्रकार का प्रत्यय जहाँ पाया जाता है वह नित्य है।
जिन्होंने कभी भी त्रस – पर्याय को प्राप्त नहीं किया और जो सदाकाल से निगोद में ही हैं वे जीव नित्य-निगोद कहलाते हैं ।
प्रतिदिन अपने घर से गंध, पुष्प, अक्षत आदि ले जाकर जिनालय में श्री जिनेन्द्र देव की पूजा करना सदार्चन अर्थात् नित्य मह कहलाता है। अथवा भक्तिभाव पूर्वक अर्हंत देव की प्रतिमा और मंदिर का निर्माण करना, अथवा दानपत्र लिखकर ग्राम, …