द्वंद का अर्थ कलह व युग्म ( जोड़ा) होता है ।
श्रुत के बारह अंग आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञातृधर्मकथांग, उपासकाध्ययनांग, अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादिक दशांग, प्रश्नव्याकरणांग, विपाकसूत्रांग और दृष्टिप्रवादांग ही द्वादशांग है । द्रव्यश्रुत रूप द्वादशांग की रचना गणधर करते हैं। इसे ही जिनवाणी कहते हैं ।