(जगत्श्रेणी) = जगतघन जगत्प्रतर : जगत् श्रेणी के वर्ग को हैं। 343 घनराजू । जगत्प्रतर कहते =
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु पृथिवी से चार अंगुल ऊपर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना गमन करने में समर्थ होते हैं वह जंघाचारण-ऋद्धि कहलाती है।
एक प्रदेश चौड़े और सात राजू लम्बे आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं ।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु पृथिवी से चार अंगुल ऊपर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना गमन करने में समर्थ होते हैं वह जंघाचारण-ऋद्धि कहलाती है।
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