जो मुनि इतर् मुनियों को दीक्षा प्रदान करता है वह आचार्य कहा जाता है और शेष मुनि छेदोपस्थापक कहे जाते हैं।
1. प्रमादवश व्रतों में दोष लग जाने पर प्रायश्चित आदि द्वारा उसका शोधन करके पुनः व्रतों में स्थिर होना छेदोपस्थापना चारित्र है। 2. निर्विकल्प साम्य अवस्था में अधिक समय न रह पाने पर साधक विकल्प रूप अर्थात् भेद रूप मूलगुणों …