षट् कुड्य (भित्ति) एवं फलहिका (काष्ठ आदि का तख्ता) आदि में नाचने आदि क्रिया में प्रवृत्त देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्यों की प्रतिमाओं को चित्रकर्म कहते हैं। क्योंकि चित्र से जो किये जाते हैं वे चित्रकर्म हैं, ऐसी व्युत्पत्ति है।
अधोलोक में सबसे पहली रत्नप्रभा पृथिवी है उसके तीन भाग हैं। इनमें से प्रथम खर भाग सोलह भेदों से युक्त है ये सोलह भाग चित्रा आदि सोलह पृथिवी रूप है इनमें से चित्रा पृथिवी अनेक प्रकार की है यहाँ पर …