विप्राणस व गृद्धपृष्ठ नाम के दोनों मरणों का न तो आगम में निषेध है और न अनुज्ञा । दुष्काल में अथवा दुर्लघ्य जंगल में, दुष्ट राजा के भय से, तिर्यंचादि के उपसर्ग से, एकाकी स्वयं सहन करने को असमर्थ होने …
गृहस्थाश्रम में कृतार्थता को प्राप्त होने पर योगि पूजा विधि पूर्वक अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर की सम्पूर्ण सम्पत्ति व कुटुम्ब पोषण का कार्यभार सौं तथा धार्मिक जीवन बिताने का उपदेश देकर स्वयं गृहत्याग कर देना गृहत्याग क्रिया है।
जिस गृहस्थ अवस्था में जिनेन्द्र देव की आराधना की जाती है। निर्ग्रन्थ गुरुओं के प्रति विनय, धर्मात्माओं के प्रति प्रीति व वात्सल्य, पात्रों को दान, आपत्तिग्रस्त पुरुषों को दया बुद्धि से दान, तत्त्व का परिशीलन, व्रतों व गृहस्थ धर्म से …