केवल का अर्थ असहाय है या केवलज्ञानमय है अथवा पर का अर्थ परब्रह्म या शुद्ध-बुद्ध रूप एक स्वभाववाला आत्मा है, उसमें है बल अर्थात् अनंतवीर्य जिसके । अथवा जो सेवते अर्थात सेवन करता है। अपनी आत्मा में एकलोलीभाव से रहता …
क्षायिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान और चारित्र केवल लब्धियाँ कहलाती हैं। ये नव
जिस कर्म के उदय से आत्मा में केवलज्ञान प्रकट नहीं होता है, उसे केवलज्ञानावरण कर्म कहते हैं ।