केवलज्ञान
केवल असहाय को कहते हैं जो ज्ञान असहाय अर्थात् इन्द्रिय, मन और प्रकाश की अपेक्षा से रहित है, त्रिकाल गोचर अनन्त पर्यायों से मुक्त समस्त पदार्थों को युगपत् जानने वाला है, सर्वव्यापक है और प्रतिपक्षी रहित है, उसे केवलज्ञान कहते हैं । केवलज्ञान में सकल चराचर जगत दप्रण में झलकते प्रतिबिंब के समान एक साथ स्पष्ट झलकता है । यह ज्ञान समस्त घातिया कर्मों के नष्ट होने पर स्वाभाविक रूप से आत्मा में प्रकट होता है। जैसे सूर्य अपने प्रकाश में जितने पदार्थ समाविष्ट होते हैं उन सबको युगपत् प्रकाशित करता है, ऐसे ही अर्हन्त और सिद्ध परमेष्ठी का केवलज्ञान सम्पूर्ण पदार्थों को युगपत् जानता है।