जिस ऋद्धि के प्रभाव से मारूत- चारण साधु अनेक प्रकार की गतिवाली वायु की प्रदेश पंक्ति पर पैर रखते हुए निर्बाध रूप से गमन करने में समर्थ होते हैं वह मारूत- चारण- ऋद्धि कहलाती है।
शिष्य, पुस्तक, कमण्डलु आदि के द्वारा अपना बड़प्पन या अभिमान प्रकट करना ऋद्धिगारव नामक दोष है। चार प्रकार के संघ को अपना भक्त बनाने के अभिप्राय से वन्दना आदि करना ऋद्धि गारव नामक दोष है।
ऋद्धि प्राप्त मनुष्यों देवों को ऋद्धि प्राप्त आर्य कहते हैं और ऋद्धि प्राप्त साधु को ऋषि कहते हैं। जो गुणों में या गुणवालों के द्वारा माने जाते हैं वे आर्य कहलाते हैं। सात प्रकार की बुद्धि आदि ऋद्धियों से जो …