ऋद्धि
तपस्या के फलस्वरूप साधुओं को प्राप्त होने वाली विशेष सामर्थ्य को ऋद्धि कहते हैं । बुद्धि, विक्रिया, तप, बल, औषध, रस और क्षेत्र ऋद्धि ऐसी सात प्रकार की ऋद्धियाँ होती हैं। अशुभ ऋद्धियों की प्रवृत्ति ऋद्धियुक्त जीवों की इच्छा से होती है किन्तु शुभ ऋद्धियों की प्रवृत्ति इच्छा से व स्वतः दोनों प्रकार से संभव है। एक आत्मा में युगपत अनेक ऋद्धियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। गणधरों के एक साथ सातों ही ऋद्धियों का सद्भाव पाया जाता है इतना अवश्य है कि अणिमा आदि ऋद्धियों से सम्पन्न प्रमत्त संयत जीव के विक्रिया करते समय आहारक शरीर की उत्पत्ति संभव नहीं है।