आत्मा में कर्म की निजशक्ति का कारणवश प्रगट न होना उपशम है। जैसे- फिटकरी आदि के संबंध से जल में कीचड़ का उपशम हो जाता है आशय यह है कि जिस प्रकार जल में निर्मली के डालने से मैले पानी …
समस्त मोहनीय कर्म के उपशम से होने वाला चारित्र उपशम – चारित्र या औपशमिक चारित्र कहलाता है।
जहाँ मोहनीय कर्म का उप करता हुआ आत्मा आगे बढ़ता है वह उपशम श्रेणी है। उपशम श्रेणी चढ़ने वाले जीव के औपशमिक या क्षायिक भाव होता है क्योंकि जिसने दर्शन मोहनीय का उपशम अथवा क्षय नहीं किया है वह उपशम …
दर्शन मोहनीय कर्म के उपशम से आत्मा में जो निर्मल श्रद्धान उत्पन्न होता है उसे उपशम सम्यक्त्व कहते हैं। यह दो प्रकार का हैप्रथमोपशम – सम्यक्त्व और द्वितीयोपशम – सम्यक्त्व |
समस्त मोह का उपशम करने वाला जीव उपशान्त कषाय कहलाता है। शरद् काल में सरोवर का जल जिस प्रकार निर्मल होता है उसी प्रकार सम्पूर्ण मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया है जिसका ऐसा उपशान्त कषाय गुणस्थानवर्ती जीव अत्यन्त निर्मल परिणाम …