जीव, पुद्गल आदि का जहां जब जैसा उत्पाद होता है उस सबका वर्णन जिसमें हो वह उत्पाद – पूर्व नाम का पहला पूर्व है।
जिस स्थान पर जीव संयम को प्राप्त होता है, वह उत्पाद ( प्रतिपधमान) स्थान है। मिथ्यात्व के चरम समय में देश संयत के प्रथम समय में प्रतिपध- मान स्थान होता है। असंयत के पश्चात् देश संयत के प्रथम समय में …
चेतन, अचेतन दोनों ही द्रव्य अपनी जाति को कभी नहीं छोड़ते फिर भी अन्तरंग और बहिरंग निमित्त के बस से प्रतिसमय जो नवीनावस्था की प्राप्ति होती है, उसे उत्पाद कहते है। प्रत्येक द्रव्य में आगम प्रमाण से अन्तर अगुरुलघु गुण …
साधु की आहार-चर्या में संभावित छयालीस दोषों में से सोलह दोष उत्पादन के हैंघात्री दोष, दूत, निमित्त, आजीव, वनीयक, चिकित्सक, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, पूर्व संस्तुति, पश्चात् संस्तुति, विद्या, मन्त्र, चूर्णयोग, मूलकर्म । (देखें व वह नाम)