जिस कर्म के उदय से जीव का लोक पूजित कुलों में जन्म होता है यह उच्चगोत्र कर्म है। गोत्र, कुल, वंश और सन्तान- ये सब एकार्थवाची हैं।
सर्व कर्म स्थिति की अन्तिम आवली को उच्छिष्टावली कहते हैं। इतनी स्थिति अवशेष रहे अर्थात् अन्त के आवली प्रमाण निषेक अवशेष रहे जिसके विसंयोजन का उपशमन या क्षपणा क्रिया न हो सके उसे उच्छिष्टावली कहते हैं ।
साँस लेने को उच्छ्वास और साँस छोड़ने को निःश्वास कहते हैं। जिस कर्म के निमित्त से जीव उच्छ्वास और निःश्वास रूप क्रिया करने में समर्थ होता है उसे उच्छ्वास नामकर्म कहते हैं। पँचेन्द्रिय जीवों के जो शीत या उष्ण आदि …