जो जीव औदारिक, वैक्रियक और आहारक इन शरीरों में से उदय को प्राप्त हुए किसी एक शरीर के योग्य शरीर वर्गणाओं तथा भाषा व मनों वर्गणाओं को नियम से ग्रहण करता है वह आहारक माना गया है। विग्रह गति को …
संयम विशेष से उत्पन्न हुई आहारक- शरीर के उत्पादन रूप शक्ति को आहारक ऋद्धि कहते हैं ।
स्वयं सूक्ष्म पदार्थ में जिज्ञासा उत्पन्न होने पर मुनि जिसके द्वारा केवली भगवान के पास जाकर अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त करता है उसे आहारक- काय कहते हैं। आहारक-काय द्वारा उत्पन्न होने वाले योग को आहारक-काययोग कहते हैं।
आहारक शरीर की उत्पत्ति प्रारम्भ होने के प्रथम समय से लगाकर शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने तक अन्तर्मुहूर्त के अपरिपूर्ण शरीर को आहारक मिश्रकाय कहते हैं । उस आहारक मिश्रकाय के द्वारा जो योग उत्पन्न होता है वह आहारक मिश्र काय …
सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान करने के लिए या असंयम को दूर करने की इच्छा से प्रमत्त-संयत (मुनि) जिस शरीर की रचना करता है वह आहारक शरीर है। आहारक शरीर न तो किसी को बाधित करता है न ही किसी से …