आहार अनेकों प्रकार का होता है। एक तो सर्व जगत् प्रसिद्ध मुख द्वारा किया जाने वाला खाने-पीने वा चाटने की वस्तुओं का है। उसे कवलाहार कहते हैं। जीव के परिणामों द्वारा प्रतिक्षण कर्म वर्गणाओं का ग्रहण कर्माहार है। वायुमंडल से प्रतिक्षण स्वतः प्राप्त वर्गणाओँ …
नवीन शरीर के लिए कारणभूत जिन पुद्गल वर्गणाओं को जीव ग्रहण करता है उनको खल और रस भाग रूप परिवर्तित करने की सामर्थ्य से युक्त आगत पुद्गल स्कंधों की प्राप्ति को आहार पर्याप्ति कहते हैं। जैसे तिल को पेलकर खल …
औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर के योग्य पुद्गल स्कन्धों की आहार द्रव्य वर्गणा संज्ञा है।