आस्रव इस लोक और परलोक में दुखदायी है वह महानदी के प्रवाह के समान तीक्ष्ण है तथा राग-द्वेष- मोह रूप होने से बध-बंधन, अपयश और क्लेशादि को उत्पन्न करने वाला है। इस प्रकार आस्रव के दोषों का चिन्तवन करना आस्रवानुप्रेक्षा …
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