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आवर आवल आवश आवा आवि आवी आवृ
23 July

आवरक व आवरण 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

जो आवृत करता है या जिसके द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कहलाता है। जो अपने विरोधी द्रव्य के सन्निधान अर्थात् समीप्य होने पर जो निर्मूलतः नहीं नष्ट होता उसे अव्रियमाण कहते हैं और दूसरे अर्थात् आवरण करने वाले …

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23 July

आवर्जित करण 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

केवली समुद्घात के सम्मुख होना ही आवर्जितकरण है यह सयोगकेवली के केवलीसमुद्घात करने के अन्तर्मुहूर्त पहिले होता है इसमें स्थिति व अनुभाग का काण्डकघात नहीं होता। अवस्थित गुणश्रेणी आयाम द्वारा घात है विशेष इतना है कि स्वस्थान केवली की अपेक्षा …

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23 July

आवर्त 

  • Posted by kundkund
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मन, वचन, काय के परिवर्तन को आवर्त कहते हैं। ये आवर्त बारह होते हैं। जो सामायिक तथा स्तवन के प्रारंभ और अन्त में किये जाते हैं जैसे ‘णमो अरिहंताणं’ इत्यादि सामायिक दण्डक के पहले क्रिया करने रूप मनोविकल्प होता है, …

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23 July

आवली 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

एक श्वाँस के संख्यातवें भाग को आवली कहते हैं। अर्थात् एक श्वाँस में संख्यात आवलियाँ होती हैं। अथवा असंख्यात समयों की एक आवली होती है। इसके छह रूप से उल्लेख मिलता हैबंध के समय से लेकर एक आवली तक कर्मों …

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23 July

आवश्यक 

  • Posted by kundkund
  • Comments 0 comment

जो इन्द्रिय और मन के वशीभूत अर्थात् आधीन नहीं होते उन्हें ‘अवश’ कहा जाता है और ऐसे अवश या संयमी (मुनि) के द्वारा रोग आदि उत्पन्न होने पर भी जो दिवस या रात्रि सम्बन्धी आवश्यक क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं, …

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