1. कुटिल भाव व मायाचारी को छोड़कर सरल शुद्ध हृदय से चारित्र का पालन करना आर्जव-धर्म कहलाता है। 2. मन, वचन और काय की ऋजुता अर्थात् सरलता का नाम आर्जव है।
रोग, शोक और वेदना से व्यथित होना ऐसे आद्रता के तीन प्रकार हैं इससे होने वाले अतिचारों को आर्तातिचार कहते हैं।