1. जो सर्वकाल सम्बन्धी आचरण को जानता हो, योग्य आचरण करता हो ओर अन्य साधुओं को आचरण कराता हो वह आचार्य कहलाता है। 2. जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच आचारों का स्वयं पालन करते हैं और …
आचार्यों के प्रति जो गुणानुराग रूप भक्ति होती है उसे आचार्च-भक्ति कहते हैं। यह सोलह कारण भावना में एक भावना है।