अपनी शक्ति के अनुसार निर्मल किए गए सम्यग्दर्शनादि में जो यत्न किया जाता है उसे आचार कहते हैं । आचार के पाँच भेद हैं – दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार । समस्त परद्रव्यों से भिन्न यह निज शुद्धात्मा ही …
जो मुनि पाँच प्रकार का आचार स्वयं पालता है और इन पाँचों आचारों में दूसरों को भी प्रवृत्त करता है तथा शिष्यों को पंचाचार का उपदेश देता है वह आचारवत्व गुण का धारक है अथवा जो दश प्रकार के स्थितिकल्प …
साधुओं को दीक्षा शिक्षा दायक, उनके दोष निवारक, तथा अन्य अनेक गुण विशिष्ट, संघ नायक साधु को आचार्य कहते हैं। वीतराग होने के कारण पंचपरमेष्ठी में उनका स्थान है। इनके अतिरिक्त गृहस्थियों को धर्म-कर्म का विधि-विधान कराने वाला गृहस्थाचार्य है। …