आचारवत्व
जो मुनि पाँच प्रकार का आचार स्वयं पालता है और इन पाँचों आचारों में दूसरों को भी प्रवृत्त करता है तथा शिष्यों को पंचाचार का उपदेश देता है वह आचारवत्व गुण का धारक है अथवा जो दश प्रकार के स्थितिकल्प में स्थित है वह आचार्य आचारवत्व गुण का धारक है ।