स्वास्थ्य
जिस समय तपस्वी के मोह के उदय से राग-द्वेष उत्पन्न हो जावे उस समय तपस्वी अपने स्वास्थ्य (आत्म स्वरूप ) की भावना करे, इससे वे क्षणभर में शान्त हो जाते हैं। बन्ध रहित निर्जरा ही स्वास्थ्य अर्थात् मोक्ष प्रदान करती है। कुछ भी बाह्य पदार्थ मेरे नहीं हैं और मैं भी उनका नहीं हूँ ऐसा सोचकर तथा समस्त बाह्य को छोड़कर हे भक्त तू मुक्ति के लिए स्वस्थ हो जा आत्मोपयोग ही स्वास्थ्य । साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चित्त निरोध और शुद्धोपयोग एकार्थवाची है।